Thursday, October 21, 2010

बिगड़ गए सत्ता के गणित

: संदर्भ राजस्थान निकाय चुनाव परिणाम : 126 निकायों में भाजपा के 58, कांग्रेस के 49 तथा अन्य दलों के 19 चेयरमैन : परिणामों से कांग्रेस मायूस जबकि कमल खिला 
आखिर वही हुआ, जिसके लिए राजस्थान की राजनीति तथा मतदाताओं को जाना जाता है। एक बार फिर प्रदेश के सुधि मतदाताओं ने प्रदेश के प्रमुखी विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के हाथों सत्तानशीं कांग्रेस को करारी हार का सामना करवाया। प्रदेश के 126 निकायों में सरकार चयन के लिए गत 18 अगस्त को हुए चुनावों के परिणाम शुक्रवार को जारी हुए। इनमें मतदाताओं ने भाजपा को 58, कांग्रेस को 49 तथा अन्य दलों को 19 निकायों में सरकार बनाने का अधिकार दे दिया। 
इस बार निकाय चुनावों में मतदाताओं को दो नई चीजों से रूबरू होने का अवसर मिला। मसलन, प्रदेश में पहली बार निकाय सरकार के चयन में वोटिंग के लिए इलेक्ट्रोनिक मशीनों का इस्तेमाल किया गया। दूसरा मतदाताओं को सीधे चेयरमैन चुनने की शक्ति भी इस बार ही मिली। इससे पहले मतदाता केवल पार्षदों का चयन करते थे और फिर विजयी पार्षद चेयरमैन चुनते थे, जिसमें जमकर खरीद-फरोख्त होती थी। लेकिन, इस बार चेयरमैन चुनाव का अधिकार सीधे जनता के हाथों में होने से खरीद-फरोख्त पर कुछ हद तक अंकुश भी देखने को मिला। ये बात और है कि लिवाली-बिकवाली की सारी कसर पार्षदों ने पूरी कर दी। परिणाम ये रहा कि प्रदेश के निकायों में एक वोट की कीमत दस हजार रुपए के आंकड़े को भी पार कर गई। निकाय चुनावों का एक सुखद पहलू ये भी रहा कि इस बार गत वर्षों के मुकाबले हिंसा का स्तर भी अपेक्षाकृत कम ही रहा। वोटिंग प्रतिशत में खासी वृद्धि दर्ज नहीं हुई, जिससे मतदाताओं की रुचि-अरुचि पर टिप्पणी करना श्रेयस्कर नहीं दिखाई देता। कुल मिलाकर जिस तरह का परिणाम जनता ने दिया है, उसमें विभिन्न निकायों में तो खुद मतदाताओं को भी हैरानी हो रही है। इसका सीधा सा कारण बागी प्रत्याशी हैं, जिन्होंने हार-जीत के तमाम समीकरणों की राजनीतिक गणित बिगाड़ कर रख दी। 
अब बात करते हैं राजनीतिक दलों की। प्रदेश में सत्तारुढ़ दल कांग्रेस के खेमे में खलबली मची हुई है। 126 निकायों में से कांग्रेस के केवल 49 प्रत्याशियों को ही चेयरमैन की कुर्सी नसीब हुई है। विपक्षी दल भाजपा से मिली करारी हार को कांग्रेस काय्रकर्ता पचा नहीं पा रहे हैं। इसके दो बड़े कारण हैं पहला, केन्द्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है और दूसरा प्रदेश में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से सरकार चला रही है। ऐसे में जहां एक ओर कांग्रेस बेहतर परिणामों के लिए आश्वस्त थी वहीं दूसरी ओर प्रदेश के जनमानस में भी ये धारणा बलवती थी कि निकाय सरकारों में कांग्रेस भारी बहुमत से जीतेगी। लेकिन, जनतंत्र का कमाल देखिए। जो कुर्सी पर हैं उन्हें नीचे पटक दिया और जो नीचे पड़े थे उन्हें कुर्सी पर बैठा दिया। अब बात भाजपा की, जिस तरह के चुनावी परिणाम आए हैं वे भाजपा की उम्मीदों से कहीं अधिक हैं। 58 सीटों पर चेयरमैन भाजपा के प्रत्याशी होंगे, ये शायद भाजपा ने भी नहीं सोचा होगा। कहने को तो प्रदेश के आला भाजपा नेता इन परिणामों को आशानुरूप बता रहे हैं। चुनावी घमासान के भाजपा के पक्ष के परिणामों ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कद को भाजपा आलाकमान की नजर में बहुत अधिक बढ़ा दिया है, इसमें कोई संशय नहीं है। राजे की व्यक्तिगत राजनीति इस बार भी मतदाताओं पर अपना जादू बिखेर गई, जबकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी के खेमे की पकड़ कमजोर ही रही। कुल मिलकार जनता-जनार्दन ने इन चुनावों में मठाधीश बनकर घूमने वाले नेताओं को अपनी मुकम्मल जगह दिखा दी। जिसके चलते जहां भारी-भरकम संख्या में नए तथा युवा चेहरों को मौका मिला वहीं वरिष्ठों को अपर्नी कुर्सी बचाने में सफलता कमोबेश कम ही मिली। खैर, परिणाम जो भी रहे हों लेकिन, एक बात साफ है कि जनतंत्र में जनता से बढ़कर कोई नहीं है। यह धारणा निकाय सरकार के इन चुनावी परिणामों से और पुष्ट हो गई है। जय हो जनतांत्रिक देश भारत के मतदाताओं की।

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