Thursday, October 21, 2010

क्या वाकई सच्‍चा लोकतंत्र चुनने जा रहे हैं?


राजस्थान में होने हैं निकाय चुनाव के लिए मतदान : 126 नगरपालिका के लिए होने हैं चुनाव : मतदान के अधिकार का उपयोग करना नहीं भूलें मतदाता : 
लोकतंत्र के अर्थ तथा उसकी महत्ता को व्यक्त करते हुए पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि जो शासन जनता का, जनता के लिए तथा जनता की ओर से किया जाता है, वही लोकतंत्र है। शायद इस कथन के जरिए लिंकन आम आदमी को विधानसभा-संसद जैसी खास जगहों पर काम करते हुए सुशासन होने तथा लाने का सपना संजोए हुए थे। अमरीका जैसे संप्रभु देश में आम आदमी शासन में है या नहीं, ये तो अमरीकीवासी ही तय कर सकते हैं। लेकिन महात्मा गांधी के सपनों के देश भारत में तो कमोबेश आम आदमी को सत्ता के खजाने की चाबी आज तक तो नहीं मिली है। आगे मिलेगी या नहीं, इस सवाल का जबाव तो भविष्य के गर्त में छिपा है। खैर, जो भी हो फिलवक्त संसद-विधानसभा पर चर्चा करने की अपेक्षा हम बात करते हैं राजस्‍थान में होने वाले निकाय चुनावों की। प्रदेश की 126 नगरपालिकाओं में सरकार चयन के लिए आगामी 18 अगस्त को चुनाव होने जा रहे हैं। हर बार की तरह इस बार भी प्रदेश का आम आदमी निकाय चुनावों के जरिए, जहां एक ओर जनप्रतिनिधियों की ओर से पूर्व में किए गए विकास कार्यों के पूरे होने की बाट जोह रहा है, वहीं दूसरी ओर अपने जेहन में उन नई-नवेली योजनाओं की उम्मीदें भी पाले बैठा है, जो उसके रहन-सहन तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाएं। गौरतलब है कि अन्य राज्यों की तरह राजस्थान के नगरपालिका क्षेत्र भी मतों की खरीद-फरोख्त तथा राजनैतिक लॉबिंग-लाइजनिंग के लिए चहुंओर जाने जाते हैं। विकास कार्यों के लिए वर्षों से उपेक्षा के शिकार रहे प्रदेश के अधिकतम पालिका क्षेत्रों के भविष्य का फैसला यहां का मतदाता 18 अगस्त को करने जा रहा है, जिस पर अंतिम मुहर 20 अगस्त को लगेगी। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि प्रदेशवासियों के सुकून तथा विकास के 5 वर्षों का खाका भी इसी दिन तैयार होना है। प्रदेश की अधिकतम नगरपालिकाएं 50 से भी अधिक वर्ष पहले अस्तित्व में आई थीं। इतने वर्षों के इस लम्बे अंतराल में हमने क्या खोया और क्या पाया? शायद इसका चिंतन-मनन करने के लिए न तो हमने आज तक जहमत उठाई और न ही कभी विकास के पायदान पर क्षेत्र कितना आगे बढ़ा इसकी चिंता की। भले ही संसद-विधानसभा चुनावों में देश का आम आदमी परिणाम को लेकर अंत तक पशोपेश की स्थिति में रहता हो। लेकिन, नगरपालिका का मतदाता यहां का परिणाम मतगणना होने से पूर्व ही घोषित कर देता है। शायद इसका सबसे बड़ा कारण यहां होने वाला मतदान का तरीका है। इतिहास साक्षी है कि चाहे देश हो या फिर प्रदेश, जहां पर भी धनबल और बाहुबल से चुनाव लड़े गए हैं, वहां के वाशिंदों को आज तक मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हुई, फिर विकास की आंधी उडऩे और गंगा बहने की बात करना तो निहायत बेमानी है। पालिका क्षेत्रों के विकास में राजनैतिक दलों ने भी समय-समय पर रोड़े अटकाए हैं। यह भी एक कड़वा सच है, जिसे हम चाहकर भी झुठला नहीं सकते। इन दलों ने भी अपनी मनमर्जी चलाकर ऐसे प्रत्याशी थोपे, जिन्होंने चुनाव लडऩे से पूर्व क्षेत्रवासियों को विकास के सब्ज-बाग तो जमकर दिखाए, लेकिन जब उन्हें पूरा करने का समय आया तो ये प्रत्याशी मतदाताओं को ढूंढऩे से भी नहीं दिखाई दिए। 
दोस्तों, इसके जरिए मैं प्रदेशवासियों से केवल दो बातें करना चाहता हूं। पहली, तो ये कि जिस तरह हम दैनंदिन दिनचर्या तथा सैर-सपाटे जैसी मनोरंजक गतिविधियों में भाग लेना नहीं भूलते हैं। उसी तरह हम 18  अगस्त को भारतीय संविधान प्रदत्त अपने मतदान के अधिकार का उपयोग करना भी नहीं भूलें, भले ही कुछ भी क्यों न हो जाए। दूसरी, प्रदेश के धनकुबेर प्रत्याशियों ने पिछले 50 से भी अधिक वर्षों से मतदाताओं को विभिन्न हथकंडों के जरिए अपनी ओर आकर्षित किया है। मैं केवल ये नहीं कह रहा हूं कि उन्होंने धन के जरिए हमें प्रभावित किया है बल्कि एक कड़वा सच ये भी है कि जितना उन्होंने प्रभावित किया है, उससे कई गुणा अधिक हम प्रभावित हुए हैं। आंचलिक क्षेत्रों के बुजुर्गों को अक्सर ये कहते सुना जाता था कि आत्मा और जमीर न कभी बिकते हैं और न ही मरते हैं। इस धारणा को आज भी देश के समग्र हिन्दी साहित्य में पढ़ा जा सकता है। लेकिन, महज कुछ दशक पहले हिन्दी के एक ख्यातिनाम शायर ने बहुत खूब कहा कि दो रुपए ज्यादा दे दो तो खुदा भी यहां बिक जाता है। फिर ये जमीर और आत्मा चीज ही क्या हैं? साथियों, निकाय चुनाव क्षेत्र के विकास की धवल उम्मीदें हैं, जिन्हें किसी भी कीमत पर न तो मैला कीजिए और न ही किसी को मैला करने दीजिए। रही बात चुनावी दलों की क्षेत्र के विकास की सोच की तो उसे उम्मीदवारों के चयन के जरिए ही आसानी से समझा जा सकता है। अपने बेशकीमती मताधिकार का हर हाल में प्रयोग करने के साथ ही हमको ये भी तय करना है कि शिक्षा, चिकित्सा, स्वास्थ्य तथा अन्य मूलभूत आवश्यकताएं जो हमारा संवैधानिक अधिकार भी है, हमें मिलेंगी या नहीं? राजनीतिक दल, लोभ-लालच, भाई-भतीजावाद तथा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दबाव से ऊपर उठकर मत का केवल प्रयोग करना ही अपने अधिकार का इस्तेमाल करना नहीं है बल्कि, सही जगह पर सही व्यक्ति के लिए मत के इस्तेमाल करने में ही उसके उपयोग की सार्थकता निहित है। मत का प्रयोग कर न केवल आप अपनी निकाय सरकार का चयन करने जा रहे हैं बल्कि, क्षेत्र के विकास की भी नई इबारत लिखने जा रहे हैं। जिम्मेदार नागरिक होने की हैसियत से आपसे गुजारिश करता हूं कि हर हाल में अपने मत का प्रयोग करें और तमाम दुर्भावनाओं तथा लोभ-लालच को दरकिनार कर निकाय चुनावों के राजनैतिक गलियारों में उन प्रत्याशियों को पहुंचाए जो न केवल आम आदमी के दर्द को समझे बल्कि, उसके हक में अपनी आवाज बुलंद भी करें।

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