Thursday, October 21, 2010

एमपी में भ्रष्‍टाचार गुनाह नहीं, सम्‍मान की बात!

: दोनों तिकड़मबाज मीडिया को भी डराने-धमकाने से नहीं डरे : राजनीति का स्तर अब गिरने लायक भी नहीं रहा
मुख्‍यमंत्री पद पर विराजित होते ही राजनीति के दिग्गज तथा जनता को सुनहरे सपने दिखाने में माहिर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने की जोरदार हुंकार भरी थी। शायद, उस समय उन्हें यह भान नहीं था कि इस मुहिम में उनके वे करीबी भी धर लिए जाएंगे, जिन्होंने प्रदेश की सत्ता के इस शिखर पद पर आरुढ़ होने में उनकी खासी मदद की। या यूं कहें कि अगर वे करीबी नहीं होते तो शायद शिवराज सिंह चौहान आज इस पद पर सुशोभित नहीं होते। खैर, राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में जो धमा-चौकड़ी मची हुई है, उसमें नीति जैसे शब्द निर्मूल साबित हो रहे हैं। मध्यप्रदेश के छोटे से गांव-कस्बों में आज के भूखे-नंगे किसानों की सोना उगलती जमीनों से लेकर इंदौर की बेशकीमती रिहायशी जमीनों तक, जो हथियाने-कब्जाने का खेल चला, उसने चौहान की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को न केवल आईना दिखा दिया बल्कि सफेदपोश नेताओं की काली करतूतों का एक और चिट्ठा भी खोल दिया। करोड़ों रुपए के इंदौर जमीन घोटाले तथा ऐसे ना जाने कितने स्याह कारनामों को अंजाम दे चुके चौहान के बेहद घनिष्ठ तथा नामजद आरोपी उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय और उनके मातहत भाजपा विधायक रमेश मेंदोला ने जिस प्रकार से चोरी करने के बाद सीना जोरी की, उससे एक बात तो स्पष्ट हो गई कि राजनीति का स्तर अब गिरने लायक भी नहीं रहा! घोटालों में नाम जाहिर होने के बाद डरना तो बहुत दूर उल्टे आरोप साबित करने वालों की ही जान पर बन आई है। अपनी ताकत की धौंस दिखाने वाले ये दोनों तिकड़मबाज मीडिया को भी डराने-धमकाने से नहीं डरे। अब तक अमूमन ऐसा माना जा रहा था कि नेता भले किसी से डरे या नहीं लेकिन, मीडिया से भय खाते हैं। विजयवर्गीय तथा मेंदोला की मीडिया को गरियाने की हरकतों ने इन धारणाओं को भी तोड़ दिया। पोल खोलने वाली मीडिया को भी ठेंगा दिखाने की एक नई परम्परा प्रारंभ करने के लिए इन दोनों को जितनी बधाईयां दी जाएं, उतनी कम हैं। आखिर काम ही इतना कमाल का जो किया है! इस पूरे प्रकरण में जो हुआ और जिस प्रकार इंदौर मीडिया ने इसे प्रकाशित-प्रसारित किया, उसने एक बात स्पष्ट कर दी कि भले ही लोकतंत्र का चौथा पाया आज उद्योग का दर्जा प्राप्त कर चुका है, बावजूद सामाजिक सरोकारों के लिए वह आज भी सजग है। बात करते हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की, जिन्होंने प्रदेशवासियों से भ्रष्टाचार के समूल नाश के वादे तो बड़े-बड़े किए थे लेकिन जब उन्हें हकीकत में बदलने की घड़ी आई तो वादे ही याद नहीं रहे। जहां एक ओर इन दोनों नेताओं ने मीडिया को डरा-धमकाकर यह साबित करने की कोशिश की है कि राजनीति के आगे सभी बौने हैं। भले ही देश की कमजोर राजनीति और राजनेताओं ने हर मौके पर देश को शर्मसार किया है। अपनी बेदाग छवि के लिए पहचाने जाने वाले चौहान के सफेद कुर्ते पर कैलाश-मेंदोला के नाम की कालिख तो पुती ही है। साथ ही इस प्रकरण पर चौहान की चुप्पी के चलते वे कटघरे में भी खड़े दिखाई देते हैं। कुल मिलाकर अब देखना यह है कि इन कमजोर तथा भ्रष्ट नेताओं को जनता-मीडिया सबक सिखा पाती है या नहीं?

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